डिस्कवर

सबक़ 34

इंजील ए मुक़द्दस मरक़ुस 34

मरक़ुस 14:12-31
  1. सब से पहले हम शुरुआत करेंगे कि आज हम किस वजह से अल्लाह का शुक्र अदा करेंगे।
  2. हमारे परिवार, हमारे समाज, या हमारे दोस्तों की ज़िन्दगी में क्या कोई परेशानी हैं जिसके लिये हम आज अल्लाह से दुआ कर सकते हैं?
  3. पीछले बार जो हमने कलाम-ए-मुक़द्दस पढ़ा और सुना, उस हिस्से में से आज हमें कौन सी बात याद है जो सब से ख़ास थी?
  4. पीछले बार जो हमने कलाम-ए-मुक़द्दस सुना, उस हिस्से की जिस आयत को हमने अमल करने के लिए तय किया था तो हमने किस तरह से अमल किया?
  5. पीछले बार जो हमने कलाम-ए-मुक़द्दस सुना, क्या हमने अपने ख़ास तरीक़े के ज़रिए किसी दुसरे शख़्स से इसका ज़िक्र किया? अगर हमने दुसरे लोगों से इसका ज़िक्र किया तो कैसा रहा हमारा तजुर्बा?
  6. अब हम कलाम-ए-मुक़द्दस पढ़ेंगे, सुनेंगे, और समझेंगे।

14:12बेख़मीरी रोटी की ईद आई जब लोग फ़सह के लेले को क़ुरबान करते थे। ईसा के शागिर्दों ने उससे पूछा, “हम कहाँ आपके लिए फ़सह का खाना तैयार करें?”

13चुनाँचे ईसा ने उनमें से दो को यह हिदायत देकर यरूशलम भेज दिया कि “जब तुम शहर में दाख़िल होगे तो तुम्हारी मुलाक़ात एक आदमी से होगी जो पानी का घड़ा उठाए चल रहा होगा। उसके पीछे हो लेना। 14जिस घर में वह दाख़िल हो उसके मालिक से कहना, ‘उस्ताद आपसे पूछते हैं कि वह कमरा कहाँ है जहाँ मैं अपने शागिर्दों के साथ फ़सह का खाना खाऊँ?’ 15वह तुम्हें दूसरी मनज़िल पर एक बड़ा और सजा हुआ कमरा दिखाएगा। वह तैयार होगा। हमारे लिए फ़सह का खाना वहीं तैयार करना।”

16दोनों चले गए तो शहर में दाख़िल होकर सब कुछ वैसा ही पाया जैसा ईसा ने उन्हें बताया था। फिर उन्होंने फ़सह का खाना तैयार किया।

17शाम के वक़्त ईसा बारह शागिर्दों समेत वहाँ पहुँच गया। 18जब वह मेज़ पर बैठे खाना खा रहे थे तो उसने कहा, “मैं तुमको सच बताता हूँ, तुममें से एक जो मेरे साथ खाना खा रहा है मुझे दुश्मन के हवाले कर देगा।”

19शागिर्द यह सुनकर ग़मगीन हुए। बारी बारी उन्होंने उससे पूछा, “मैं तो नहीं हूँ?”

20ईसा ने जवाब दिया, “तुम बारह में से एक है। वह मेरे साथ अपनी रोटी सालन के बरतन में डाल रहा है। 21इब्ने-आदम तो कूच कर जाएगा जिस तरह कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, लेकिन उस शख़्स पर अफ़सोस जिसके वसीले से उसे दुश्मन के हवाले कर दिया जाएगा। उसके लिए बेहतर यह होता कि वह कभी पैदा ही न होता।”

22खाने के दौरान ईसा ने रोटी लेकर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उसे टुकड़े करके शागिर्दों को दे दिया। उसने कहा, “यह लो, यह मेरा बदन है।”

23फिर उसने मै का प्याला लेकर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उसे उन्हें दे दिया। सबने उसमें से पी लिया। 24उसने उनसे कहा, “यह मेरा ख़ून है, नए अहद का वह ख़ून जो बहुतों के लिए बहाया जाता है। 25मैं तुमको सच बताता हूँ कि अब से मैं अंगूर का रस नहीं पियूँगा, क्योंकि अगली दफ़ा इसे नए सिरे से अल्लाह की बादशाही में ही पियूँगा।”

26फिर वह एक ज़बूर गाकर निकले और ज़ैतून के पहाड़ के पास पहुँचे।

27ईसा ने उन्हें बताया, “तुम सब बरगश्ता हो जाओगे, क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में अल्लाह फ़रमाता है, ‘मैं चरवाहे को मार डालूँगा और भेड़ें तित्तर-बित्तर हो जाएँगी।’ 28लेकिन अपने जी उठने के बाद में तुम्हारे आगे आगे गलील पहुँचूँगा।”

29पतरस ने एतराज़ किया, “दूसरे बेशक सब बरगश्ता हो जाएँ, लेकिन मैं कभी नहीं हूँगा।”

30ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुझे सच बताता हूँ, इसी रात मुरग़ के दूसरी दफ़ा बाँग देने से पहले पहले तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर चुका होगा।”

31पतरस ने इसरार किया, “हरगिज़ नहीं! मैं आपको जानने से कभी इनकार नहीं करूँगा, चाहे मुझे आपके साथ मरना भी पड़े।”


  1. इस हिस्से में जो कुछ हमने सुना है उसे अपने लफ़्ज़ों में दोहराइए।
  2. इस कलाम-ए-मुक़द्दस के हिस्से में कौन-कौन सी बात हमें अच्छी लगी?
  3. इस हिस्से का क्या क्या अहम सबक़ है?
  4. इस हिस्से में क्या कोई अच्छी मिसाल है, जिसे हमें अपनी ज़िन्दगी में अमल करना चाहिये, या कोई ख़राब मिसाल है जिसे हमें अमल नहीं करना चाहिये?
  5. आने वाले दिनों में हम अपनी ज़िन्दगी में किस तरह से एक ख़ास तरीक़े के ज़रिये इस पर अमल करेंगे?
  6. हमारे इस ख़ास तरीक़े के ज़रिये हम किससे इस हिस्से का ज़िक्र करेंगे?


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