डिस्कवर

सबक़ 4

सताया जाना

मत्ती 5:1-2, मत्ती 5:10-12, यूहन्ना 15:18-21, यूहन्ना 16:1-4, मत्ती 5:43-48
  1. सब से पहले हम शुरुआत करेंगे कि आज हम किस वजह से अल्लाह का शुक्र अदा करेंगे।
  2. हमारे परिवार, हमारे समाज, या हमारे दोस्तों की ज़िन्दगी में क्या कोई परेशानी हैं जिसके लिये हम आज अल्लाह से दुआ कर सकते हैं?
  3. पीछले बार जो हमने कलाम-ए-मुक़द्दस पढ़ा और सुना, उस हिस्से में से आज हमें कौन सी बात याद है जो सब से ख़ास थी?
  4. पीछले बार जो हमने कलाम-ए-मुक़द्दस सुना, उस हिस्से की जिस आयत को हमने अमल करने के लिए तय किया था तो हमने किस तरह से अमल किया?
  5. पीछले बार जो हमने कलाम-ए-मुक़द्दस सुना, क्या हमने अपने ख़ास तरीक़े के ज़रिए किसी दुसरे शख़्स से इसका ज़िक्र किया? अगर हमने दुसरे लोगों से इसका ज़िक्र किया तो कैसा रहा हमारा तजुर्बा?
  6. अब हम कलाम-ए-मुक़द्दस पढ़ेंगे, सुनेंगे, और समझेंगे।

5:1भीड़ को देखकर ईसा पहाड़ पर चढ़कर बैठ गया। उसके शागिर्द उसके पास आए 2और वह उन्हें यह तालीम देने लगा :


5:10मुबारक हैं वह जिनको रास्तबाज़ होने के सबब से सताया जाता है, क्योंकि उन्हें आसमान की बादशाही विरसे में मिलेगी।

11मुबारक हो तुम जब लोग मेरी वजह से तुम्हें लान-तान करते, तुम्हें सताते और तुम्हारे बारे में हर क़िस्म की बुरी और झूटी बात करते हैं। 12ख़ुशी मनाओ और बाग़ बाग़ हो जाओ, तुमको आसमान पर बड़ा अज्र मिलेगा। क्योंकि इसी तरह उन्होंने तुमसे पहले नबियों को भी ईज़ा पहुँचाई थी।


15:18अगर दुनिया तुमसे दुश्मनी रखे तो यह बात ज़हन में रखो कि उसने तुमसे पहले मुझसे दुश्मनी रखी है। 19अगर तुम दुनिया के होते तो दुनिया तुमको अपना समझकर प्यार करती। लेकिन तुम दुनिया के नहीं हो। मैंने तुमको दुनिया से अलग करके चुन लिया है। इसलिए दुनिया तुमसे दुश्मनी रखती है। 20वह बात याद करो जो मैंने तुमको बताई कि ग़ुलाम अपने मालिक से बड़ा नहीं होता। अगर उन्होंने मुझे सताया है तो तुम्हें भी सताएँगे। और अगर उन्होंने मेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारी तो वह तुम्हारी बातों पर भी अमल करेंगे। 21लेकिन तुम्हारे साथ जो कुछ भी करेंगे, मेरे नाम की वजह से करेंगे, क्योंकि वह उसे नहीं जानते जिसने मुझे भेजा है।


16:1मैंने तुमको यह इसलिए बताया है ताकि तुम गुमराह न हो जाओ। 2वह तुमको यहूदी जमातों से निकाल देंगे, बल्कि वह वक़्त भी आनेवाला है कि जो भी तुमको मार डालेगा वह समझेगा, ‘मैंने अल्लाह की ख़िदमत की है।’ 3वह इस क़िस्म की हरकतें इसलिए करेंगे कि उन्होंने न बाप को जाना है, न मुझे। 4मैंने तुमको यह बातें इसलिए बताई हैं कि जब उनका वक़्त आ जाए तो तुमको याद आए कि मैंने तुम्हें आगाह कर दिया था।


5:43तुमने सुना है कि फ़रमाया गया है, ‘अपने पड़ोसी से मुहब्बत रखना और अपने दुश्मन से नफ़रत करना।’ 44लेकिन मैं तुमको बताता हूँ, अपने दुश्मनों से मुहब्बत रखो और उनके लिए दुआ करो जो तुमको सताते हैं। 45फिर तुम अपने आसमानी बाप के फ़रज़ंद ठहरोगे, क्योंकि वह अपना सूरज सब पर तुलू होने देता है, ख़ाह वह अच्छे हों या बुरे। और वह सब पर बारिश बरसने देता है, ख़ाह वह रास्तबाज़ हों या नारास्त। 46अगर तुम सिर्फ़ उन्हीं से मुहब्बत करो जो तुमसे करते हैं तो तुमको क्या अज्र मिलेगा? टैक्स लेनेवाले भी तो ऐसा ही करते हैं। 47और अगर तुम सिर्फ़ अपने भाइयों के लिए सलामती की दुआ करो तो कौन-सी ख़ास बात करते हो? ग़ैरयहूदी भी तो ऐसा ही करते हैं। 48चुनाँचे वैसे ही कामिल हो जैसा तुम्हारा आसमानी बाप कामिल है।


  1. इस हिस्से में जो कुछ हमने सुना है उसे अपने लफ़्ज़ों में दोहराइए।
  2. इस कलाम-ए-मुक़द्दस के हिस्से में कौन-कौन सी बात हमें अच्छी लगी?
  3. इस हिस्से का क्या क्या अहम सबक़ है?
  4. इस हिस्से में क्या कोई अच्छी मिसाल है, जिसे हमें अपनी ज़िन्दगी में अमल करना चाहिये, या कोई ख़राब मिसाल है जिसे हमें अमल नहीं करना चाहिये?
  5. आने वाले दिनों में हम अपनी ज़िन्दगी में किस तरह से एक ख़ास तरीक़े के ज़रिये इस पर अमल करेंगे?
  6. हमारे इस ख़ास तरीक़े के ज़रिये हम किससे इस हिस्से का ज़िक्र करेंगे?


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