डिस्कवर

सबक़ 8

एक दूसरे से मुहब्बत रखना

यूहन्ना 13:1-17, यूहन्ना 13:31-15
  1. सब से पहले हम शुरुआत करेंगे कि आज हम किस वजह से अल्लाह का शुक्र अदा करेंगे।
  2. हमारे परिवार, हमारे समाज, या हमारे दोस्तों की ज़िन्दगी में क्या कोई परेशानी हैं जिसके लिये हम आज अल्लाह से दुआ कर सकते हैं?
  3. पीछले बार जो हमने कलाम-ए-मुक़द्दस पढ़ा और सुना, उस हिस्से में से आज हमें कौन सी बात याद है जो सब से ख़ास थी?
  4. पीछले बार जो हमने कलाम-ए-मुक़द्दस सुना, उस हिस्से की जिस आयत को हमने अमल करने के लिए तय किया था तो हमने किस तरह से अमल किया?
  5. पीछले बार जो हमने कलाम-ए-मुक़द्दस सुना, क्या हमने अपने ख़ास तरीक़े के ज़रिए किसी दुसरे शख़्स से इसका ज़िक्र किया? अगर हमने दुसरे लोगों से इसका ज़िक्र किया तो कैसा रहा हमारा तजुर्बा?
  6. अब हम कलाम-ए-मुक़द्दस पढ़ेंगे, सुनेंगे, और समझेंगे।

13:1फ़सह की ईद अब शुरू होनेवाली थी। ईसा जानता था कि वह वक़्त आ गया है कि मुझे इस दुनिया को छोड़कर बाप के पास जाना है। गो उसने हमेशा दुनिया में अपने लोगों से मुहब्बत रखी थी, लेकिन अब उसने आख़िरी हद तक उन पर अपनी मुहब्बत का इज़हार किया।

2फिर शाम का खाना तैयार हुआ। उस वक़्त इबलीस शमौन इस्करियोती के बेटे यहूदाह के दिल में ईसा को दुश्मन के हवाले करने का इरादा डाल चुका था। 3ईसा जानता था कि बाप ने सब कुछ मेरे सुपुर्द कर दिया है और कि मैं अल्लाह में से निकल आया और अब उसके पास वापस जा रहा हूँ। 4चुनाँचे उसने दस्तरख़ान से उठकर अपना लिबास उतार दिया और कमर पर तौलिया बाँध लिया। 5फिर वह बासन में पानी डालकर शागिर्दों के पाँव धोने और बँधे हुए तौलिये से पोंछकर ख़ुश्क करने लगा। 6जब पतरस की बारी आई तो उसने कहा, “ख़ुदावंद, आप मेरे पाँव धोना चाहते हैं?”

7ईसा ने जवाब दिया, “इस वक़्त तू नहीं समझता कि मैं क्या कर रहा हूँ, लेकिन बाद में यह तेरी समझ में आ जाएगा।”

8पतरस ने एतराज़ किया, “मैं कभी भी आपको मेरे पाँव धोने नहीं दूँगा!”

9यह सुनकर पतरस ने कहा, “तो फिर ख़ुदावंद, न सिर्फ़ मेरे पाँवों बल्कि मेरे हाथों और सर को भी धोएँ!”

10ईसा ने जवाब दिया, “जिस शख़्स ने नहा लिया है उसे सिर्फ़ अपने पाँवों को धोने की ज़रूरत होती है, क्योंकि वह पूरे तौर पर पाक-साफ़ है। तुम पाक-साफ़ हो, लेकिन सबके सब नहीं।” 11(ईसा को मालूम था कि कौन उसे दुश्मन के हवाले करेगा। इसलिए उसने कहा कि सबके सब पाक-साफ़ नहीं हैं।)

12उन सबके पाँव धोने के बाद ईसा दुबारा अपना लिबास पहनकर बैठ गया। उसने सवाल किया, “क्या तुम समझते हो कि मैंने तुम्हारे लिए क्या किया है? 13तुम मुझे ‘उस्ताद’ और ‘ख़ुदावंद’ कहकर मुख़ातिब करते हो और यह सहीह है, क्योंकि मैं यही कुछ हूँ। 14मैं, तुम्हारे ख़ुदावंद और उस्ताद ने तुम्हारे पाँव धोए। इसलिए अब तुम्हारा फ़र्ज़ भी है कि एक दूसरे के पाँव धोया करो। 15मैंने तुमको एक नमूना दिया है ताकि तुम भी वही करो जो मैंने तुम्हारे साथ किया है। 16मैं तुमको सच बताता हूँ कि ग़ुलाम अपने मालिक से बड़ा नहीं होता, न पैग़ंबर अपने भेजनेवाले से। 17अगर तुम यह जानते हो तो इस पर अमल भी करो, फिर ही तुम मुबारक होगे।



  1. इस हिस्से में जो कुछ हमने सुना है उसे अपने लफ़्ज़ों में दोहराइए।
  2. इस कलाम-ए-मुक़द्दस के हिस्से में कौन-कौन सी बात हमें अच्छी लगी?
  3. इस हिस्से का क्या क्या अहम सबक़ है?
  4. इस हिस्से में क्या कोई अच्छी मिसाल है, जिसे हमें अपनी ज़िन्दगी में अमल करना चाहिये, या कोई ख़राब मिसाल है जिसे हमें अमल नहीं करना चाहिये?
  5. आने वाले दिनों में हम अपनी ज़िन्दगी में किस तरह से एक ख़ास तरीक़े के ज़रिये इस पर अमल करेंगे?
  6. हमारे इस ख़ास तरीक़े के ज़रिये हम किससे इस हिस्से का ज़िक्र करेंगे?


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